सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्वनी वैष्णव के अनुसार डिजिटल इंडिया न केवल सेवाओं को बल्कि देशवासियों को भी सशक्त करेगा। न्यूयॉर्क की बर्नस्टीन रिसर्च संस्था के अनुसार साल 2028-29 तक भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आकार 200 अरब डॉलर का होगा। यदि इस रिपोर्ट की संभावनाओं पर देखें तो यह एक अच्छा संकेत है। परन्तु इसे धरातलीय सच में बदलने की राह में डिजिटल इंडिया में कुछ खामियाँ अभी भी है, जिसके लिए प्रयास अनिवार्य हैं। जैसे अब भी लगभग 40 प्रतिशत लोग इंटरनेट की सतत उपलब्धता से वंचित है। भारत में पिछडे राज्यों में भी डिजिटल साक्षरता का भारी अभाव है। इसके साथ-साथ अब भी इंटरनेट की समावेशी पहुँच नहीं है।
डिजिटल इंडिया की राह में एक अन्य समस्या डिजिटल डाटा के समय के साथ बढ़ते संग्रह को सुरक्षित करने की भी है। डाटा की गोपनीयता एवं उसकी चोरी को रोकने के लिए सरकार ने जस्टिस वी. कृष्णा समिति की सिफारिशों पर कार्य करना शुरू कर किया है। उच्चतम न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक आधार माना है, ऐसे में भारतीयों के निजी आँकड़े उसकी निजता से जुड़े होने के कारण यह राज्य के समक्ष एक नयी जिम्मेदारी प्रस्तुत करते हैं।
अतः अब आवश्यकत्ता है कि इस राह उत्पन्न बाधायें दूर करने के प्रयासों में तेजी लायें एवं आदर्श पुरुष डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के न्यू इंडिया के साथ-साथ प्रधानमंत्री के डिजिटल सशक्तीकरण के लक्ष्य को सम्भव बनायें, और जिससे ई-गवर्नेन्स से शुरू हुआ सफर एम-गवर्नेन्स) अर्थात् मोबाइल गवर्नेन्स के माध्यम से देश के हर कोने में, हर वर्ग, हर समूह, हर व्यक्ति तक पहुंचे।
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