सफलता के दबाव में चुनौतियों से जूझते युवा

देशभर में हर साल आत्महत्या के हजारों मामले सामने आते हैं, पिछले कई सालों की तुलना में ये मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इनमें छात्रों के आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो पूरे देश के लिए एक चिंता की बात है।

हाल ही में, कोचिंग का हब कहे जाने वाले प्रयागराज से छात्रों के आत्महत्या के मामले सामने आए, अब तक यहां कई छात्र खुद की जान ले चुके हैं। हालिया सर्वेक्षण के अनुसार प्रयागराज में पढ़ रहे छात्रों में से 7 प्रतिशत छात्रों ने कम से कम एक बार अपना जीवन समाप्त करने पर विचार किया है। यह चिंता का विषय है कि देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों में आत्महत्या का खतरा बढ़ता जा रहा है। बता दें इस साल अब तक प्रयागराज में 16 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं।

प्रयागराज में आत्महत्या करने वाले छात्रों में से अधिकांश छात्र 18 से 25 वर्ष की आयु के हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि प्रयागराज में पढ़ रहे छात्रों को कई तरह के दबावों का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई छात्र ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं और उनके पास प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं। वे अक्सर लंबे समय तक रूम में रहकर पढ़ाई करते हैं, जिससे वे अकेलेपन और अलगाव का भी अनुभव करते हैं।

हाल ही में जारी लोकनीति सीएसडीएस सर्वेक्षण से पता चलता है कि परिवार की उच्च अपेक्षाएँ, शैक्षणिक तनाव और वित्तीय कठिनाइयाँ छात्रों पर भारी असर डालती हैं।

प्रयागराज के कटरा क्षेत्र में रहने वाले विवेक सिंह (बदला हुआ नाम) 2 साल से यहां सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं, उन्होंने बताया कि जब वो पहली बार यहां तैयारी करने आए थे तो उन्हें यह बताया गया था कि अगर वो सिविल सर्विस की परीक्षा में सफल नहीं हुए तो उनका जीवन बर्बाद हो जाएगा और उनके सामने और कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा।

प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू जिला चिकित्सालय के मनोचिकित्सक डॉक्टर नीलेश रघुवंशी बताते हैं कि ‘इन दबावों के कारण छात्र अकेलेपन, घबराहट, अवसाद और गुस्से जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करने लगते हैं और यह दबाव उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकता है। वे आगे बताते हैं कि आत्महत्या के खतरे को कम करने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जैसे छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना होगा और उन्हें मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित करना साथ ही उन्हें को सामाजिक और भावनात्मक तौर पर भी समर्थन देना होगा।’

ज्ञात हो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2021 में हर दिन 35 से अधिक की दर से 13,000 से अधिक छात्रों की मृत्यु हुई।

सरकार और समाज को इन छात्रों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि उन्हें सही मार्गदर्शन मिले। इसके लिए शिक्षा संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं शामिल करनी चाहिए। साथ ही आत्महत्या से बचाव के लिए जागरूकता अभियानों को मजबूत करना चाहिए और मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों की सुविधा बढ़ानी चाहिए। इससे हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाकर छात्रों को सशक्त बना सकते हैं।

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Ashutosh Chaubey

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